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तमी॑ळिष्व॒ य आहु॑तो॒ऽग्निर्वि॒भ्राज॑ते घृ॒तैः । इ॒मं न॑: शृणव॒द्धव॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam īḻiṣva ya āhuto gnir vibhrājate ghṛtaiḥ | imaṁ naḥ śṛṇavad dhavam ||

पद पाठ

तम् । ई॒ळि॒ष्व॒ । यः । आऽहु॑तः । अ॒ग्निः । वि॒ऽभ्राज॑ते । घृ॒तैः । इ॒मम् । नः॒ । शृ॒ण॒व॒त् । हव॑म् ॥ ८.४३.२२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:22 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:33» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:22


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शिव शंकर शर्मा

सर्वपूज्य ईश्वर ही है, यह इससे दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (मनीषिणः) मनस्वी और मन के ऊपर अधिकार रखनेवाले (मेधिरासः) विद्वान् और (विपश्चितः) तत्त्ववित् और आत्मद्रष्टा ऐसे जन (अद्मसद्याय) ज्ञान-विज्ञान की सिद्धि के लिये अथवा विविध भोग के लिये (धीभिः) सर्व प्रकार की सुमतियों तथा कर्मों से (अग्निम्) अग्नि-वाच्य परमात्मा को ही प्रसन्न करते हैं ॥१९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यों ! जब श्रेष्ठ पुरुष निखिल मनोरथ की सिद्धि के लिये उसी को प्रसन्न करते हैं, तब आप भी अन्यान्य भौतिक अग्नि सूर्य्यादिकों की उपासना पूजा छोड़कर केवल उसी को पूजो ॥१९॥
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शिव शंकर शर्मा

सर्वपूज्य ईश्वर एवास्तीति प्रदर्श्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - मनीषिणः=मनस्विनो मनसः प्रभवः। मेधिरासः=मेधाविनः। विपश्चितः=तत्वविद् आत्मद्रष्टारः। ईदृशा जनाः। अद्मसद्याय=ज्ञानविज्ञानसिद्धये। धीभिः=सर्वाभिः सुमतिभिः कर्मभिश्च। अग्निमेव। हिन्विरे=प्रीणयन्ति ॥१९॥